Thursday 30 April 2015

खाना न 2 - धर्म अस्थान उम्र बुडापा ........












जय माता दी !

गुरुदेव जी डी वशिस्ट के आशीर्वाद से ………


मित्रों आप सब को आचार्य हेमंत अग्रवाल का नमस्कार। मित्रों मैं आप सब का धन्यवाद करता हूँ कि आप सब समय निकाल कर मेरे आर्टिकल्स पड़ते हैं और उनसे अधिक अधिक लाभ उठाते हैं। अगर आप सब को आर्टिकल्स में किसी सब्जेक्ट के बारे में और अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो आप निसंकोच मुझसे संपर्क कर सकते हैं। जो कि मुझे आर्टिकल्स को और भी बेहतर बनाने में उत्साहित करेगा। मित्रों अगर आप की ज़िंदगी में कोई भी समस्या चल रही है और आप उससे निजाद पाना चाहते है तो मुझे ज़रूर लिखें और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी आप लोगों को मुहैया करवा सकूँ। 
द्वितीय भाव
द्वितीय भाव धर्म स्थान है। लाल किताब ने इसे जगत गुरु बृहस्पति की गद्दी कहा है। इस भाव का स्वामी शुक्र और कारक गुरु है। जातक की वृद्धावस्था के सम्बन्ध में इसी भाव से विचार किया जाता है। - सफ़ेद झंडा को हम साय झूले, उम्र बुढ़ापा घर दो का।
द्वितीय भाव में चन्द्रमा उच्च का होता है। यदि वह द्वितीय भाव में अवस्थित भी हो तो स्वग्रही और उच्च का होने के कारण किस्मत का ग्रह बन जाता है।
"घर चलकर जो आवे दूजे, ग्रह -किस्मत बन जाता है"
जातक के कर्म - फल को दर्शाने वाला भाव यही है। दितीय भाव की बुनियाद 9 वां घर है। नौवें घर को कर्मों का सागर कहा गया है। दितीय भाव पर्वत है।
"बुनियाद समुद्र ग्रह 9 होते, पहाड़ ऊँचा घर 2 का है"
कर्म रूपी जल से भरी हुई हवाएँ 9 वें भाव रूपी सागर से चलकर दितीय भाव रूपी पर्वत से टकरा कर कर्म रूपी जल की वर्षा कर देती है। यहाँ इन कर्मों के फल का फैसला होता है।
लाल किताब की फल कथन पद्धति के अनुसार आठवें भाव में बैठा हुआ ग्रह अपने से पीछे की ओर भाव न 2 को देखता है। यह विपरीत दृष्टि हुई। अतः दितीय में कोई ग्रह न हो तो फल शुभ होता है। यदि 2 और 8 दोनों हीखाली हों तो फल श्रेष्ठतम होता है।
आठवें घर में बैठा हुआ ग्रह दूसरे घर को देखता है। दूसरे घर में बैठा हुआ छठे को देखता है। इस प्रकार आठवें की अलामत दूसरे के द्वारा छठे में पहुँच जाती है। यह तब होता है जब तीनों ही घरों में ग्रह विधमान हों। यदि दूसरा और आठवां भाव खाली हुए तो छठे भाव के पीड़ित होने का प्रश्न ही नही उठता।
यदि दितीय भाव का स्वामी शुक्र और कारक गुरु दोनों ही बलहीन हों तो इस भाव पर दुर्भाग्य की मार पड़ती है। तब चतुर्थ उसकी मदद करता है। अतः दितीय पीड़ित हुआ तो चतुर्थ का बल देखना चाहिए। चतुर्थ का स्वामी चन्द्रमा है और कारक भी वही है। वह माता का प्रतिनिधि है। अतः चन्द्रमा बलवान हो तो माता के आशीर्वाद से दितीय भाव का उद्धार हो जाता है।
दसवाँ घर खाली हो तो दितीय भाव सोया हुआ माना गया है - "खाली पड़ा घर दस जब टेवे ,सोया हुआ कहलाता दो"
विहग दृष्टि से देखने पर ये सिद्धांत अटपटे लगते है, किन्तु फल की सटीकता को देखें तो अनूठे सिद्ध होते है।
मित्रों जैसा कि आप जानते हैं कि लाल किताब ज्योतिष के सामुद्रिक ज्ञान पर आधारित है। सामुद्रिक में भृकुटि को खाना नं 2 या धर्मस्थान कहा गया है और हस्त विज्ञान में अंगूठे को। मित्रों आने वाले लेखों में आप देखेंगे कि बृहस्पत के स्थान (2,5,9,11,12) में स्थित ग्रह किस प्रकार जातक के भाग्य को प्रभावित करते हैं और उनके उपाए केवल तिलक करने से कैसे संभव है। 

’’घर चलकर जो आवे दूजे, ग्रह किस्मत का बन जाता हो,
खाली पड़ा घर 10 जब टेवे, सोया हुआ कहलाता हो"
कुण्डली के खाना नम्बर 2 को लाल किताब में धर्म अस्थान उम्र बुढापा कहा गया है। माथे पर (पैशानी) पर तिलक लगाने की जगह खाना नम्बर 2 की असली जगह है। यह बृहस्पत का असल पड़ाव (मुकाम) है। चन्द्र उच्च करता है जो बृहस्पत का दोस्त है। इस घर को नीच करने वाला कोई ग्रह नही। इस घर का मालिक शुक्र है जिसे लक्ष्मी अवतार माना गया है। इस घर को सब ग्रहों ने इज्ज़त से देखा है। खुद जाती किस्मत, ससुराल का मकान व खानदान, रिश्तेदारों से पाई हुईं चीज़ें मार्फत स्त्री धन या दहेज, नफ़सानी ताकत, भूख, मोह माया, दौलत इज्ज़त शरीफाना, बुढापे में जुबानी व हवाई इश्क, बचत निजी (जाती) कमाई, जन्म मरण का दरवाजा, स्त्री ताल्लुक, माता, बुआ, मासी, फूफी, बेवा (एसी स्त्री जिस का पति मर गया हो) या माशूका औरत वगैरह, रिश्तेदारों से दौलत, बृहस्पत या शुक्र जैसे हों वैसा ही फल होगा। सभी (तमाम) ग्रह बृहस्पत के निम्न कोटि के  (ज़ेर) साया होंगे। यह मैदान (सहन) है खाना नम्बर 8 का और इस घर का न्यायकर्ता (मुन्सिफ) होगा मंगल बद। बृहस्पत या शुक्र जैसे हों वैसा ही फल होगा। तमाम ग्रह बृहस्पत के छत्रछाया में (ज़ेरसाया)  होंगे। 
खाना नम्बर 2 को हवाई ख्याल की तमाम ताकतों, राहु - केतु मुश्तर्का की बैठक या बनावटी (मस्नूई) शुक्र की जगह मानते हैं। खाना नम्बर 8 का असर जाता है खाना नम्बर 2 में और खाना नम्बर 2 देखता है खाना नम्बर 6 को । इसलिए नम्बर 2 का फैसला नम्बर 6, 8 को साथ मिलाकर होगा। खाना नम्बर 2 राहु केतु की बैठक मुश्तर्का होगी जिसमें सनीचर की मौत का ताल्लुक न होगा। जिस तरह खाना नम्बर 4 ने अपनी नेकी न छोड़ी, उसी तरह खाना नम्बर 2 ने कुल दनिया से सम्बन्ध (ताल्लुक) न छोड़ा। खाना नम्बर 4 के खज़ाने का भेदी खाना नम्बर 2 होगा। इन दो खानों का इकट्ठा (मुश्तर्का) असर किस्मत का करिश्मा हुआ जो दोनों का निचोड़ (लबे लुबाब) भी कहा जा सकता है। खाना नम्बर 4 बढ़ाता है चन्द्र को तो नम्बर 2 बढ़ाता है बृहस्पत को। खाना नम्बर 8 खाली हो तो नम्बर 2 उम्दा होगा। जब खाना नम्बर 2 खाली हो तो रूहानी असर उम्दा। अगर खाना नम्बर 9 बरसाती मौनसून हवा के उठने का समन्दर है तो खाना नम्बर 2 इस बारिश से लद्दी हुई हवा से टकरा कर बरसा लेने वाला पर्वत माला (कोहसार) होगा।
इस घर में मंगल बद के अंश सूर्य और शनि (जज़बी ग्रह) और पापी ग्रह टेवे वाले पर मन्दा असर न देंगे बल्कि राहु भी यहां बृहस्पत के मातहत होगा। सब ग्रह खाना नम्बर 9 का फल, टेवे वाली की उम्र के आखिरी हिस्सा में देंगे। मसलन् खाना नम्बर 9 में सनीचर का फल 60 साल है जो टेवे वाले की उम्र के शुरू होने की तरफ से 60 साल बुढापे की तरफ है। लेकिन सनीचर जब खाना नम्बर 2 में हो तो इसका वही असर मौत के दिन से पीछे जन्मदिन की तरफ 60 साल होगा। इस घर के ग्रह बुढापे में हमेशा नेक फल देंगे चाहें (ख्वाह) वह किसी दूसरे असूलों की गिनती या चाल वगैरह से कितने ही मन्दे क्यों न हों।
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आचार्य हेमंत अग्रवाल 
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माता रानी सब को खुशीआं दे।

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