जय माता दी !
गुरुदेव जी डी वशिस्ट के आशीर्वाद से ………
मित्रो आज मैं आप सभी को लाल किताब के आधार पर सरल से उपाए करके बुरे ग्रहों के प्रकोप को कम करके जीवन में आने वाली तकलीफों को कैसे कम करके जीवन को सुख मय बना सकते हैं । क्यों कि यह विषय बड़ा होने के कारण यहाँ एक ही पोस्ट में विस्तार से व्याख्या कर पाना मुश्किल है। इसलिए इसे मैंने अलग से ब्लॉग में लिखा है। आशा करता हूँ कि इसे पढ़ने में आप सब को कठिनाई नहीं होगी। मुझे उम्मीद है की आप सब को इससे लाभ जरूर होगा।
बुध की नाली
हर तीसरे घर के ग्रह यानि 1, 3 कभी बाहम (आपस में) नहीं मिल सकते। इसलिये बाहम (आपस में) असर भी नही मिला सकते। लेकिन अगर बुध की नाली से कभी मिल जावें तो वह बाहम (आपस में) बुरा असर न देंगे। अगर नेक हो जावे तो बेशक हो जावें।
शुक्र बुध दोनों इकट्ठे ही मुबारक हैं और खाना नम्बर 7 दोनों का पक्का घर है। लेकिन जब जुदा जुदा हो जावें और अपने से सातवें पर होवें तो दोनों का फल रद्दी। लेकिन जब तक इस सातवें की शर्त से दूर हों मगर हों दोनो जुदा जुदा तो बुध जिस घर में बैठा हो, वह (बुध) उस घर के तमाम ग्रहों का और उस घर में उनके बैठे हुये का अपना अपना असर शुक्र के बैठा होने वाले घर में नाली लगाकर मिला देगा। यानि दोनों घरों का असर मिला मिलाया हुआ इकट्ठा गिना जायेगा। फर्क सिर्फ यह हुआ कि शुक्र अपने घर का असर उठाकर बुध बैठा होने वाले घर में नही ले जाता मगर बुध का अपने बैठा होने वाले घर का असर उठाकर शुक्र बैठा होने वाले घर में जा मिलाता है। किस्सा कोताह (अंत संक्षेप में) जब कभी शुक्र का राज हो तो शुक्र बैठा होने वाले घर में बुध बैठा होने वाले घर का असर साथ मिला हुआ गिना जायेगा।
मगर बुध की तख्त की मालकियत के वक्त अकेले ही उन ग्रहों का असर होगा जिनमें कि बुध बैठा हो। शुक्र बैठा होने वाले घर के ग्रह का असर बुध वाले घर में मिला हुआ न गिना जायेगा। बुध शुक्र के इस तरह पर असर मिलाने के वक्त अगर बुध कुण्डली में शुक्र से बाद के घराें में बैठा हो तो, बुध का अपना जाति असर बुरा होगा। अगर बुध कुण्डली में शुक्र से पहले घरों में बैठा हुआ और उठाकर अपने बैठा होने वाले घर का असर ले जावे शुक्र बैठा होने वाले घर में तो अब बुध का लाया हुआ असर में जाती अपना असर बुरा न होगा बल्कि भला ही गिना जायेगा। इस मिलावट के वक्त अगर बुध वाले घर में शुक्र के दुश्मन ग्रह भी शामिल हों तो शुक्र इज़ाज़त ने देगा कि बुध अपने बैठा होने वाले घर का असर उठाकर शुक्र बैठा होने वाले घर में मिला देवे। यानि ऐसी हालत में बुध की नाली बन्द होगी और शुक्र को जब बुध की मदद न मिली तो शुक्र अब बुध के बगैर पागल होगा। लेकिन अगर बुध का साथ वहां शुक्र के दोस्त ग्रह हों तो शुक्र कोई रूकावट न देगा। बल्कि बुध को ज़रूर अपना असर शुक्र बैठा होने वाले घर में ले जाना पड़ेगा। हो सकता है कि ऐसी मिलावट में राहु केतु दोनों शामिल हो (यह हालत सिर्फ उस वक्त होगी जब राहु केतु अपने से सातवें घर होने की वजह से बुध और शुक्र भी आपस में सातवें घर होंगे ) तो मन्दा नतीजा होगा। खास करके उस वक्त जब बुध होवे शुक्र के बाद के घरों में और साथ ही राहु और केतु का दौरा भी आ जावे । यानि उन मे से कोई एक तख्त की मालकियत के दौरे के हिसाब से आ जावे तो उस वक्त (जबकि इस मिलावट में राहु केतु शुक्र बुध के साथ मिल रहें हैं और राहु केतु का अपना उधर राज पर इकट्ठे होने का भी वक्त है) कुण्डली वाले के लिए मार्क स्थान का भयानक ज़माना होगा। यानि मौत के बराबर का बुरा वक्त होगा। लेकिन अगर यह शर्तें पूरी न हों या बुध होवे शुक्र से पहले घरों में तो यह मन्दा ज़माना न होगा। मन्दा ज़माना सिर्फ राहु केतु के दौरे के वक्त होगा। शुक्र या बुध के दौरे (ग्रह के दौरे से मुराद ग्रह मतल्का का खाना नम्बर 1 में आने का ज़माना होगा) के वक्त यह लानत न होगी। इस बुध की नाली का खास फायदा मंगल से मतल्का (सम्बंधित) है। बाज़ (किसी) वक्त मंगल को सूरज की मदद मिलती हुई मालूम नही होती या चन्द्र का साथ होता हुआ मालूम नही होता, इस नाली की वजह से मंगल को मदद मिल जाती है और मंगल जो सूरज चन्द्र के बगैर मंगल बद होता है, मंगल नेक बन जाता है। इसी तरह मंगल बुध बाहम दुश्मन हैं। मंगल के बगैर शुक्र की औलाद कायम नही रहती। बुध जब मंगल के साथ होवे तो लाल कण्ठी वाला तोता होगा और खुद उठकर और मंगल को साथ उठाकर शुक्र से मिला देगा या शुक्र की औलाद बचा देगा। जिससे कण्डली वाला लाऔलाद (नि:सन्तान) न होगा। ऐसी हालत में बुध या शुक्र के बाहम पहले या बाद के घराें में होने पर बुध के जाति असर की बुराई की शर्त न होगी। भलाई का असर ज़रूर होगा। क्योंकि मंगल ने शुक्र के दौरे के पहले साल में अपना असर ज़रूर मिलाना है। गोया बुध की नाली 100 प्रतिशत, 50 प्रतिशत, 25 प्रतिशत और अपने से 7वें होने की दृष्टि से बाहर एक और ही शुक्र और बुध की बाहम दृष्टि है और यह है इसलिए कि शुक्र में बुध का फल मिला हुआ माना जाता है। मिलावट में राहु के साथ हो जाने के वक्त जब शुक्र ने बुध को बाहर ही रोक दिया तो शुक्र में बुध का फल न मिला तो बुध के बगैर शुक्र पागल होगा या शुक्र खाना नम्बर 8 के असर वाला होगा (और अधिक जानकारी के लिए ज़िक्रर लाल किताब अमृत पृष्ठ 125, गुरुदेव जी डी वशिष्ठ द्वारा) । इसी तरह शुक्र के बगैर बुध का असर सिर्फ फूल होगा फल न होगा। यानि कुवते वाह (संभोग शक्ति) होगी तो मंगल की बच्चा पैदा करने की ताकत का शुक्र को फायदा न मिलेगा।
मगर बुध की तख्त की मालकियत के वक्त अकेले ही उन ग्रहों का असर होगा जिनमें कि बुध बैठा हो। शुक्र बैठा होने वाले घर के ग्रह का असर बुध वाले घर में मिला हुआ न गिना जायेगा। बुध शुक्र के इस तरह पर असर मिलाने के वक्त अगर बुध कुण्डली में शुक्र से बाद के घराें में बैठा हो तो, बुध का अपना जाति असर बुरा होगा। अगर बुध कुण्डली में शुक्र से पहले घरों में बैठा हुआ और उठाकर अपने बैठा होने वाले घर का असर ले जावे शुक्र बैठा होने वाले घर में तो अब बुध का लाया हुआ असर में जाती अपना असर बुरा न होगा बल्कि भला ही गिना जायेगा। इस मिलावट के वक्त अगर बुध वाले घर में शुक्र के दुश्मन ग्रह भी शामिल हों तो शुक्र इज़ाज़त ने देगा कि बुध अपने बैठा होने वाले घर का असर उठाकर शुक्र बैठा होने वाले घर में मिला देवे। यानि ऐसी हालत में बुध की नाली बन्द होगी और शुक्र को जब बुध की मदद न मिली तो शुक्र अब बुध के बगैर पागल होगा। लेकिन अगर बुध का साथ वहां शुक्र के दोस्त ग्रह हों तो शुक्र कोई रूकावट न देगा। बल्कि बुध को ज़रूर अपना असर शुक्र बैठा होने वाले घर में ले जाना पड़ेगा। हो सकता है कि ऐसी मिलावट में राहु केतु दोनों शामिल हो (यह हालत सिर्फ उस वक्त होगी जब राहु केतु अपने से सातवें घर होने की वजह से बुध और शुक्र भी आपस में सातवें घर होंगे ) तो मन्दा नतीजा होगा। खास करके उस वक्त जब बुध होवे शुक्र के बाद के घरों में और साथ ही राहु और केतु का दौरा भी आ जावे । यानि उन मे से कोई एक तख्त की मालकियत के दौरे के हिसाब से आ जावे तो उस वक्त (जबकि इस मिलावट में राहु केतु शुक्र बुध के साथ मिल रहें हैं और राहु केतु का अपना उधर राज पर इकट्ठे होने का भी वक्त है) कुण्डली वाले के लिए मार्क स्थान का भयानक ज़माना होगा। यानि मौत के बराबर का बुरा वक्त होगा। लेकिन अगर यह शर्तें पूरी न हों या बुध होवे शुक्र से पहले घरों में तो यह मन्दा ज़माना न होगा। मन्दा ज़माना सिर्फ राहु केतु के दौरे के वक्त होगा। शुक्र या बुध के दौरे (ग्रह के दौरे से मुराद ग्रह मतल्का का खाना नम्बर 1 में आने का ज़माना होगा) के वक्त यह लानत न होगी। इस बुध की नाली का खास फायदा मंगल से मतल्का (सम्बंधित) है। बाज़ (किसी) वक्त मंगल को सूरज की मदद मिलती हुई मालूम नही होती या चन्द्र का साथ होता हुआ मालूम नही होता, इस नाली की वजह से मंगल को मदद मिल जाती है और मंगल जो सूरज चन्द्र के बगैर मंगल बद होता है, मंगल नेक बन जाता है। इसी तरह मंगल बुध बाहम दुश्मन हैं। मंगल के बगैर शुक्र की औलाद कायम नही रहती। बुध जब मंगल के साथ होवे तो लाल कण्ठी वाला तोता होगा और खुद उठकर और मंगल को साथ उठाकर शुक्र से मिला देगा या शुक्र की औलाद बचा देगा। जिससे कण्डली वाला लाऔलाद (नि:सन्तान) न होगा। ऐसी हालत में बुध या शुक्र के बाहम पहले या बाद के घराें में होने पर बुध के जाति असर की बुराई की शर्त न होगी। भलाई का असर ज़रूर होगा। क्योंकि मंगल ने शुक्र के दौरे के पहले साल में अपना असर ज़रूर मिलाना है। गोया बुध की नाली 100 प्रतिशत, 50 प्रतिशत, 25 प्रतिशत और अपने से 7वें होने की दृष्टि से बाहर एक और ही शुक्र और बुध की बाहम दृष्टि है और यह है इसलिए कि शुक्र में बुध का फल मिला हुआ माना जाता है। मिलावट में राहु के साथ हो जाने के वक्त जब शुक्र ने बुध को बाहर ही रोक दिया तो शुक्र में बुध का फल न मिला तो बुध के बगैर शुक्र पागल होगा या शुक्र खाना नम्बर 8 के असर वाला होगा (और अधिक जानकारी के लिए ज़िक्रर लाल किताब अमृत पृष्ठ 125, गुरुदेव जी डी वशिष्ठ द्वारा) । इसी तरह शुक्र के बगैर बुध का असर सिर्फ फूल होगा फल न होगा। यानि कुवते वाह (संभोग शक्ति) होगी तो मंगल की बच्चा पैदा करने की ताकत का शुक्र को फायदा न मिलेगा।
बुध के दांत
दांत कायम हों तो आवाज़ अपनी मर्ज़ी पर काबू में होगी । गोया बृहस्पति की हवाई ताकत (पैदायश औलाद) पर काबू होगा। मंगल भी साथ देगा । यानि जब तक दांत (बुध) न हों, चन्द्र मदद देगा। जब दांत न थे तब दूध दिया । जब दांत दिये तो क्या अन्न (शुक्र) न देगा ? यानि बुध होवे तो शुक्र की खुद-ब-खुद (अपने आप) आने की उम्मीद होगी। लेकिन जब दांत आकर चले गये (और मुंह के ऊपर के जबाड़े के सामने के) तो अब मंगल बुध का साथ न होगा। न ही बृहस्पति पर काबू होगा या उस शख्स या औरत के अब औलाद का ज़माना खतम हो चुका होगा जबकि यह दांत आकर चले गये या खतम हो गये। दांत गये दांत कथा गई । बृहस्पति खत्म तो लावल्द (नि:संतान) हुआ।
तोते की 35 (पैंती)
''लटपट 35 चतुर सुजान,
कहो गंगा रामा श्री भागवान।''
तोते की 35 यह दोहा बचपन में कई बार सुना था । मगर इसका कोई ज्योतिषीय मतलब भी हो सकता है, यह बाद में लाल किताब से ही पता चला ।
बुध के ग्रह का भेद
तोते की 35 के कुण्डली के खानों को गौर से मुलाहज़ा (निरीक्षण) करें तो कुण्डली का खाना नम्बर 9 कहीं नही मिलेगा। बुध का यह खाना नम्बर 9, वह खुद खाना नम्बर 9 एक अजीब हालत का है । यही खाना नम्बर 9 एक चीज़ है जो इन्सान व हैवान में फर्क कर देता है और तमाम ग्रहों की बुनियाद है । या दोनों जहान की हवा बृहस्पति असल है। इस 35 के 11 खानें दर असल बुध के 12 खाना की हालत बताते हैं । यानि खाना नम्बर 10 के बुध को सनीचर, नम्बर 2 के बुध को बृहस्पति वगैरह जिस तरह कि इस तोते की 35 की कुण्डली में लिखे हैं, लेंगे। यानि असर के लिए बुध के अपने असर की बजाये दिए हुए ग्रहों की हालत का असर लेंगे। यानि बुध
जिस घर में बैठा हो वहां बैठा हुआ वह उस ग्रह का असर देगा जिस ग्रह का वह खाना नम्बर पक्का घर मुकर्रर (निश्चित)है।
मित्रो जल्द से जल्द अपनी कुंडली निकालें और देखें अगर आप की कुंडली में ऐसे योग हों तो हमारे गुडगाँव कार्यालय में ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुशप्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल बनायें।
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आचार्य हेमंत अग्रवाल
ऍफ़ ऍफ़ 54, व्यापार केंद्र, सी ब्लॉक, सुशांत लोक, गुडगाँव - 122009
फ़ोन : 01242572165, मोबाइल : 8860960309
फेस बुक पेज पर आचार्य हेमंत अग्रवाल
ईमेल : pb02a033@gmail.com
सावधानी: कोई भी उपाय करने से पहले हमारे गुडगाँव कार्यालय में ज्योतिषाचार्य से सलाह अवश्य लें।
माता रानी सब को खुशीआं दे।
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