Thursday 30 April 2015

खाना नंबर 3 - मृतु के समय कूच का मार्ग (रोग इत्यादी) .......

जय माता दी !


गुरुदेव जी डी वशिस्ट के आशीर्वाद से ………


मित्रों आप सब को आचार्य हेमंत अग्रवाल का नमस्कार। मित्रों मैं आप सब का धन्यवाद करता हूँ कि आप सब समय निकाल कर मेरे आर्टिकल्स पड़ते हैं और उनसे अधिक अधिक लाभ उठाते हैं। अगर आप सब को आर्टिकल्स में किसी सब्जेक्ट के बारे में और अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो आप निसंकोच मुझसे संपर्क कर सकते हैं। जो कि मुझे आर्टिकल्स को और भी बेहतर बनाने में उत्साहित करेगा। मित्रों अगर आप की ज़िंदगी में कोई भी समस्या चल रही है और आप उससे निजाद पाना चाहते है तो मुझे ज़रूर लिखें और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी आप लोगों को मुहैया करवा सकूँ। 
तृतीय भाव
लाल किताब की उक्ति है -तीन मंदा काने अर्थात तीन काने होते है। तीन की संख्या अशुभ मानीजाती है। तीन आदमी एक साथ किसी काम के लिए नही जाते। कोई वस्तु लेनी देनी हो तो तीन की संख्या में नही देते। तीसरा रन लेने की कोशिश में अच्छे अच्छे बल्लेबाज आउट हो जाते है। यों तो शास्त्रीय ज्योतिष में भी तीसरे भाव को बहुत शुभ भावों की श्रेणी में नही रखा गया है; किन्तु लाल किताबकार ने तो इसे बहुत ही अशुभ कहा है।
इस घर का रंग है खूनी, असर होता भी है खूनी।
तृतीय भाव का स्वामी बुध और कारक मंगल होता है। शास्त्रीय ज्योतिष में इसकी संज्ञा 'सहज ' है। इस भाव से भाई बहनों का विचार किया जाता है। लाल किताबकार ने सिद्धांत रूप में तीसरे भावको भाई -बन्धुओ का कारक माना गया है। किन्तु फल कथन के दौरान इसके मारक पक्ष को ही उभारा है। इस भाव को विशेष रूप से मृत्यु और रोग का कारक माना गया है -
इस दुनिया से कूच का वक्त,राहे रवानगी और बीमारियाँ।
तृतीय भाव में राहू तथा बुध उच्च और शुक्र नीच का होता है।
तृतीय भाव में ग्रहों की स्थिति और इस पर ग्रहों की दृष्टि के अध्ययन से यह पता चलता है की जातक की मृत्यु कब और कैसे और कहा होगी तथा वह किन रोगों से पीड़ित होगा। 
शास्त्रीय ज्योतिष के अनुसार दु:स्थानों में खोटे ग्रह शुभ होते है; किन्तु लाल किताब के अनुसार तृतीय में राहु - केतु की स्थिति खतरनाक। राहू केतु स्वय मारक नही होते; किन्तु वे मृत्यु - तुल्य कष्ठकर स्थति उत्पन्न कर देते है। राहु केतु के तृतीय में होने के साथ साथ षष्ठम या अष्टम में भी खोटे ग्रह हुए तो मृत्यु की सम्भावना बढ़ जाती है यदि तृतीयस्थ राहु -केतु के साथ साथ शठास्थ दोनों में ही खोटे ग्रह हुए तो "राहे रवानगी " निश्चित है।
संकट के समय तृतीया भाव को द्वादश भाव से सम बल मिलता है, चाहे द्वादस्थ ग्रहों से शत्रुता ही क्यों ना हो। उदाहरण के लिए मान लीजिये की केतु तृतीय में है और मंगल द्वादश में। मंगल, केतु का शत्रु होते हुए भी, आपातकाल में भी केतु की सहायता करेगा, उसे सम बल देगा। फल स्वरुप जातक पर केतु का दुष्प्रभाव नही होगा। इसी प्रकार यदि गुरु तृतीय में हो और बुध द्वादश में तो बुध, गुरु का शत्रु होते हुए भी, गुरु को सम बल देता है। फलतः तृतीया भाव की कोई छति नही होती। जातक को सुख समृद्धि ही प्राप्त होगी। यदि इन स्थानों (12 -3 ) में दो या दो से अधिक ग्रह हो तो उनके फलाफल का विश्लेषण करके हानि का अनुमान लगाना होगा।
द्वादश में राहु और शुक्र इक्कठे बैठे हो तो जातक की आयु के 24 वें या 25 वें वर्ष में उसके जीवन साथी को मृत्यु देते है। द्वादश में राहु शुक्र के साथ साथ तृतीय में शनि बैठा हो तो वह शुक्र की सहायता करेगा। फलतः राहु अपनी शरारत करेगा। फलतः राहु अपनी शरारत में सफल नही हो सकेगा।
राहे रवानगी
’’इस घर का जो रंग है खूनी, असर होता भी खूनी है ।
होता जभी ग्रह इस घर ज़ुल्मी, देता असर वह कष्टी है।’’
कुण्डली के खाना नम्बर 3 को लाल किताब में इस दुनिया से कूच के वक्त राहे रवानगी कहा गया है। असल (हकीकी) रिश्तेदार, बहन भाई, भाई बन्द, साले बेह्नोइये, नज़र का असर (पत्थर फाड़े या तारे) जिगर खून, आम खुशी गमी की औसत हालत, सुभाओ गर्म-तरोबादी होगा। दरिन्दे शेर जंगली जानवर, भाई का घर, ताये, चाचे का मकान, मकान के साजो सामान वास्ते आराइश अंदरूनी, दरख्त की शाख व तना मुराद होगी | जिस्मानी ताकत, मुताल्लिका बृहस्पत, ठगी, चोरी, अयारी, यारी मुहब्बत, नुक्सान, जंग व जदल, नेकी, इन्साफ (मुंसिफ़ी), बज़ुर्गाना ताल्लुक, बच्चा पैदा करने की ताकत, परिवार, कबीला का बढ़ना व बढ़ाना, उठती जवानी का हाल, आकाश, दुनिया से माया के चले जाने का रास्ता, दूसरों की मदद से पैदा करदा दोस्त यार मददगार आदमी, दक्षिण दिशा (जनूब), बुध, शनि और मंगल जैसे हों वैसा ही फल होगा। इस घर में चन्द्र, शुक्र, शनि राशि फल के होंगे। यह मैदान (सेहन) है खाना नम्बर 11 का और इसका न्याकर्ता (मुन्सिफ) होगा बुध सब्ज़, मंगल। मर्द व औरत की जोड़ी या आपसी (बाहमी) ताल्लुक व उम्र का साथ ज़ाहिर होगा (खाना नंबर 3 से)।
त्रिलोकी का भेद खाना नम्बर 3 से खाना नम्बर 9 में नौ ही ग्रहों से ज़ाहिर हुआ। जहां कि गैबी और ज़ाहिरा दोनो जहांन का मालिक बृहस्पत था। जिसने दुनिया को यह ख़बर देने के लिए गृहस्थियों का घर शुक्र का खाना नम्बर 2 को पक्का घर बनाया। जिसमें आने के बाद चले जाने का पैगाम या मौत का हुक्म भी खाना नम्बर 8 से आने लगा। इस गुरू (बृहस्पत) ने यह भेद कुत्ते के ज़रिए खाना नम्बर 6 में भेजा। कुत्ता बोला तो उसकी आवाज़ फिर वापिस आसमानी खाना नम्बर 12 में जा पहुंची। इस भेद की जो चीज़ खाना नम्बर 3 से 9 में और खाना नम्बर 8 से खाना 2 में ले गई वह दृष्टि देखना या मंगल सनीचर की नज़र का होना कहलाया। इस नज़र को बृहस्पत ने पहचाना और अपने साथी दुनियावी दरवेश कुुत्ते की आवाज़ बुध से ज़ाहिर कर दिया। बृहस्पत ने गैबी बात पहचानी। केतु ने बुध के रास्ते धन दौलत के सुख के खाने में ख़बर दे दी। दोनो दरवेशों (बृहस्पत और केतु) की इस ताकत को बुध ने ज़ाहिर किया। इसलिए बुध का आकाश या आवाज़ नक्कारा खल्क को आवाज़े खुदा समझा गया या बुध सब का भेद खोल देगा। अगर बुध अच्छा तो चन्द्र का बुरा फल न होगा। जब चन्द्र अच्छा तो शुक्र का बुरा फल न होगा। इसीलिए बुध अपना फल शुक्र में पहुंचा देता है। यानि बुध के बगैर शुक्र पागल होगा और शुक्र के बगैर बुध दीवाना पागल कुत्ता होगा जो अपने मालिक को छोड़कर (दीवाना कुत्ता मालिक को छोड़ जाता है) और अगर वह अपने ही घर जहां वह पागल हुआ बंधा होवे यानि खाना नम्बर 12 में तो मालिक को भी काट देगा। गोया बुध ही सब ग्रहों का भेदी है और बृहस्पत सबको जानने वाला है। यह दोनो ही ग्रह राहु केतु के सर और पांव को पहचान सकते हैं क्योंकि दोनों मुश्तर्का ग्रहचाली बच्चा माने हैं। खुलासातन खाना नम्बर 3 के ग्रह खाना नम्बर 8 की रद्दी हालत से बचाने वाले होंगे। ख्वाह वह नम्बर 3 के ग्रह खुद खाना नम्बर 11 की मन्दी हालत में ही क्यों न हों। या यूं कहो कि खाना नम्बर 3 कुण्डली वाले पर मन्दा न होगा अगर खुद उस ग्रह की मुताल्लिका चीज़ों का ताल्लुक मन्दा हो तो बेशक ।
जब नम्बर 3 में पापी ग्रह बैठें हो और नम्बर 8 व 6 भी मन्दे हो रहे हों तो अगर मौत नही तो बहाना मौत ज़रूर खड़ा कर देंगे। खाना नम्बर 12 का ग्रह ख्वाह नम्बर 3 वाले का दुश्मन ही हो, नम्बर 3 को मदद देगा। मसलन् मंगल नम्बर 12, केतु नम्बर 3 हो तो मच्छ रेखा वास्ते धन दौलत हालांकि मंगल और केतु बाहम दुश्मन हैं । इसी तरह बुध नम्बर 12 और शनि या बृहस्पत नम्बर 3 हों तो अमृतकुण्ड, हर तरह से बरकत का ज़माना होगा। अगर नम्बर 12 में शुक्र राहु मुश्तर्का हों तो ज़ाहिरा तौर पर 21 या 25 साला उम्र में बेवापन ज़ाहिर होगा। लेकिन अगर उसी वक्त खाना नम्बर 3 में शनि बैठा हो तो राहु का शुक्र पर बुरा असर न होगा। क्योंकि शनि शुक्र का मदद दे देगा। जब नम्बर 3 में मुश्तर्का ग्रह हों तो 12 व 3 के ग्रहों की बाहमी दोस्ती दुश्मनी बहाल होगी।
अब व्याख्या करते हैं : खाना न 12 का ग्रह तीसरे धर में बैठे ग्रह कि सहायता करेगा, चाहे उसका शत्रु ही क्यों न हो, जैसे मंगल 12, केतु तीसरे (धन के लिये मच्छ रेखा), जबकि मंगल-केतु शत्रु हैं।इसी प्रकार बुध 12 शनि या बृहस्पत तीसरे हों तो अमृत कुण्ड, हर प्रकार से बरकत का समय है। 12 में शुक्र-राहु 21-25 वर्ष में विधवा करते हैं, परन्तु तीन में शनि हो तो शुक्र पर राहु का प्रभाव नही पड़ेगा। शनि शुक्र की सहायता करे, तीसरे में कई ग्रह हों तो 3-12 के ग्रहों कि परस्पर मित्रता-शत्रुता बहाल रहेगी |
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आचार्य हेमंत अग्रवाल 
ऍफ़ ऍफ़ 54, व्यापार केंद्र, सी ब्लॉक, सुशांत लोक, गुडगाँव 
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ईमेल : pb02a024@gmail.com 
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माता रानी सब को खुशीआं दे।

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