Tuesday 21 April 2015

शनि देव अशुभ होने के प्रभाव (भाग 1) .......

जय माता दी !
गुरुदेव जी डी वशिस्ट के आशीर्वाद से ……… मित्रों आज मैं शनि देव के बारे में चर्चा करने जा रहा हूँ। इस पोस्ट में मैं शनि देव के कुंडली में अलग अलग घरों में अच्छे और बुरे प्रभावों के बारे में बताऊँगा। अगर आप की कुंडली में भी ऐसे योग हों या शनि देव से सम्बंधित नीचे लिखे हुए हालत हों तो अच्छे ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुश प्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल करें।
अन्य ग्रहों की अपेक्षा शनि के फल ज्यादा देर तक प्रभावी रहते है। क्योंकि शनि बहुत मंद गति से चलता है। इसका घनत्व भी और ग्रहों से अधिक है। इसलिए उसका हमारी धरती पर कार्मिक प्रभाव अन्य ग्रहों से अधिक गहरा है। बहुत से लोग शनि की प्रकृति को समझे बिना ही शनि को हौवा समझ बैठे है। वास्तव में शनि दुष्ट ग्रह नही है। जन्म कुंडली का दशम भाव भाग्य भाव है और दशमेश होने के कारण शनि भाग्य का नियंता है। भाग्य क्या है ? वह है कर्म का सम्यक फल। भाग्य भाव का अधिपति होने के कारण प्राणी मात्र को शनि उसके शुभाशुभ कर्मो का सर्वथा उचित फल देता है। यदि किसी ने कर्म ही खोटे किये है तो उसे खोटा फल मिलेगा ही। इसमें शनि का क्या दोष? उसे दुष्ट ग्रह क्यों कहा जाये? जो बबूल बोयगा उसे कांटे ही मिलेंगे।
लाल किताब में शनि को दुष्ट का कारक माना गया है। यह मान्यता ज्योतिष की परंपरागत धारणा से सर्वथा भिन्न है। किन्तु पूरी तरह सही है। दृष्टि का प्रयोजन व्यक्ति की बाह्य आकृति और रंग रूप को देखने तक ही सीमित नही है। कुछ और भी है। वह यह है -व्यक्ति के अन्तरम् में बैठकर उसके गुण दोषों का अवलोकन करना, उसके भले बुरे कर्मों को जान लेना। शनि के सन्दर्भ में लाल किताब ने 'दृष्टि ' शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में किया है। शनि तो जातक के भले -बुरे कर्मों का तोल कर उन्ही के अनुरूप फल देता है। क्या यह कार्य भेदक दृष्टि के बिना संभव है? इस दृष्टि से देखें तो लाल किताबकार की उदभावना मौलिक ही नही, गूढ़ रहस्य्मय भी है।
शनि दुष्ट ग्रह नही है। उसके लिए दुष्ट शब्द का प्रयोग करना एक महात्मा की अवमानना करना है। वास्तव में शनि के स्वाभाव के दो पक्ष है। एक ओर तो वो मोक्षकामी त्यागी तपस्वी है। दूसरी ओर जातक के शुभाशुभ कर्मों का फलदाता है। भले बुरे के भेद से कर्मों के फल कोमल भी होते है कठोर भी। अतः शनि की प्रकृति में कोमलता भी है और कठोरता भी। लाल किताब के अनुसार शनि की कोमलता केतु है कठोरता राहु।
लाल किताब में शनि को एक विशाल सांप माना गया है जिसका सिर राहु है और पूछ केतु । इन्ही के माध्यम से शनि शुभाशुभ फल विभिन्न भावों में पहुंचाता है ।
एक, दो, तीन क्रम अनुसार केतु यदि शनि से पूर्वागत भावों में हो तो शनि शुभ फल देता है। वह सदा जातक की सहायता करता है। केतु यदि शनि से पश्चादागत भावों में हो तो शनि अति विषाक्त फल देता है। 
शनि यदि शुभका होकर 2, 5, 9, 12 भावों में स्तिथ हो तो कभी अशुभ फल नही देता ।
शनि से पूर्ववर्ती भावों में कहीं भी स्थित होकर शुक्र यदि शनि को देखे तो वह जातक के सम्बन्धियों, उसके घर और शनि द्वारा शासित वस्तुओं पर दुष्प्रभाव डालता है। 
शनि सामान्यतः बच्चों पर बुरा प्रभाव नही डालता; किन्तु गुरु - शनि या बुध - मंगल (दोनों ही नकली शनि) साथ - साथ हों तो बच्चे भी बुरे फल से प्रभावित होते है। पंचम भाव में यदि शनि बैठा हो या मंगल बुध साथ साथ हों तो बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 
जब शनि अशुभ हो तो राहु उसके फल को वहन करता है। 
शनि किसी भी रूप से राहु या केतु के सम्बब्ध हो तो अत्यंत अशुभ हो जाता है। 
चन्द्रमा और राहु एक एक करके इकट्ठे ही द्वादश में स्थित हों तो शनि अशुभ नही रहता। इस दशा में वह शुभ भी नही होता। ऐसी स्थति में लोहे इस्पात से बनी हुई वस्तुएं और शनि से सम्बंधित अन्य वस्तुएं दान में देना हितकर होता है। 
केंद्र भावों में स्त्री ग्रहों के साथ स्थित होने पर शनि राहु केतुवत आचरण करता है और बुरे फल देता है। 
शनि अपने शत्रु ग्रहों को और स्त्री ग्रहों को साथ साथ देखता हो तो अपने शत्रु - ग्रहों के प्रभाव से विपरीत फल उत्पन्न करता है। वह दूसरे ग्रहों के फलों को इस क्रम से बिगाड़ता है ।




गुरु के भावों (9, 12) में बैठकर शनि कभी भी ख़राब फल नही देता; किन्तु शनि के घर (दशम) में बैठकर गुरु दुष्फल देता है। क्योकि दशम में गुरु नीच का होता है। दशम में मंगल शुभ होता है; किन्तु तृतीयस्थ शनि जातक को कंगाल कर देता है। राहु द्वारा शासित द्वादश में शनि अशुभ होता है।
शनि का अधिदेवता भैरो और धातु लोहा तथा इस्पात है। कोयला, पत्थर, नमक, पीपरमेंट, दाल उड़द छिलके समेत, सरसों का तेल, स्परिट और शराब शनि की वस्तुए है। लुहार, बड़ाई और मोची उसके व्यवसाय है। भैंस, मछली, सांप, बिच्छू, कौआ और चमगादड़ शनि के पशु पक्षी है। चाचा उसके सम्बन्धी है। कीकर, खजूर और जूते - मोजे शनि द्वारा शाषित होते है।
लाल किताबकार के अनुसार ज्योतिष में शनि को सांप भी माना गया हैं। सांप का नाम आते ही दिल में डर सा पैदा होने लगता है। हालांकि हर सांप ज़हरीला नही होता। शनि का सांप खज़ाने का रखवाला भी होता है। चन्द्र नगद रूपया तो शनि खजांची है। शनि के सांप के बिना गरीबी का कुत्ताा भौंकता होगा। अगर खाना नं 3 में शनि कंगाल है तो खाना नं 9 में मकान जायदाद का मालिक भी है। अगर खाना नं 6 में शनि खतरनाक ज़हरीला सांप है तो खाना नं 12 मे साया करने वाला शेषनाग भी है। दूसरे लफज़ों में, दोस्ती और दुश्मनी शनि के दोनों पहलू हैं। दरअसल शनि बद कम बदनाम ज्यादा है।
लाल किताब के फरमान नं 15 के मुताबिक:- 
'' पाप नैया न हर दम चलती, न ही माला ग्रह कुल की, 
शनि होता न मुंसिफ दुनिया, बेड़ी गर्क थी सब की'' । 
अगर शनि दुनिया का मुंसिफ न होता तो सब की बेड़ी गर्क हो जाती। मतलब यह कि दुनियावी काम काज़ चलाने के लिये शनि की ज़रूरत है। सन्यास या मकान-जायदाद, चालाकी से धन दौलत कमाने का ज़माना, 36 साला उम्र, शनि की पहचान है। 
तमाम मकानों, इन्सान की बिनाई और हरेक की नेकी और बदी का हिसाब किताब लिखने वाले एजेन्टों का मालिक, हाकिम शनि देवता ज़ाहिरा पीर है। इसी लिये कई मन्दिरों में शनि की पूजा होती है। नेक हालत में जब अपने जाती स्वभाव के असूल के मुताबिक नेक असर का हो तो बृहस्पति के घरों (खाना नं 2, 5, 9, 12) में कभी बुरा असर नही देता। शनि का ऐजण्ट केतु, उम्र की किश्ती का मल्लाह है। बुध के दायरे मे राहु केतु की तरफ से जिस कार्रवाई की लिखत लिखाई हो, शनि उस पर धर्म से फैसला करता है। नेक असर के वक्त शनि इन्सानी उम्र के 10, 19, 37 साल में उत्तम फल देता है। अगर कुंडली में एक दो तीन की तरकीब और दृष्टि के असूल पर पहले घरों में केतु हो और शनि के बाद में तो शनि एक इच्छाधारी तारने वाला सांप होगा। शनि को अगर सांप माना जाये तो उसकी दुम केतु बैठा होने वाले घर में होगी और सर उसका राहु बैठा होने वाले घर में गिना जायेगा। बृहस्पति कायम हो तो शनि एक ठंडा सर सब्ज पहाड़ होगा, खासकर जब चन्द्र भी दुरूस्त हो। बृहस्पति के घराें में शनि का असर वैद धन्वतरि की हैसियत का उम्दा होगा। हामला औरत, इकलौते या खानदान में अकेले लड़के के सामने शनि का सांप खुद अन्धा होगा और डंक न मारेगा। 
मंदी हालत के वक्त मौत का फन्दा फैलाये दिन दिहाड़े सब के सामने सरे बाज़ार कत्ल करने की तरह मंदा ज़माना खड़ा कर देगा। फकीर को खैरात देने की बजाये उल्ट उसकी झोली में माल निकाल लेगा। सब से धन की चोरी करता कराता फिर भी निर्धन ही होगा। हरेक के आगे सवाली फिर उसी पर चोट मार देना इसका काम होगा। मंदी हालत में शनि का एजेंट राहु होगा जो ज़हर का भण्डारी है।
दो या दो से ज्याद नर ग्रहों (बृहस्पति, सूरज, मंगल) के साथ शनि काबू में हो जाता है और ज़हर नही उगल सकता। जिस कदर मुकाबले पर दुश्मन ग्रहों (सूरज, चन्द्र, मंगल) का साथ बढ़ता जाये शनि और भी मन्दा हो जाता है। मंदी हालत में शनि की चीज़ों का दान मददगार होगा। 
बृहस्पति के घराें में शनि बुरा फल नही देता मगर बृहस्पति खुद शनि के घर खाना नं. 10 में नीच हो जाता है। मंगल अकेला शनि के घर खाना नं 10 में राजा है मगर मंगल के घर खाना नं 3 में शनि नगद माया से दूर कंगाल हो जाता है। सूरज के घर खाना नं 5 में शनि बच्चे खाने वाला सांप है मगर शनि के घर खाना नं 11 में सूरज उत्तम, धर्मी हो जाता है। चन्द्र के घर खाना नं 4 में शनि पानी में डूबा हुआ सांप जो अधरंग से मरे हुये को शफ़ा (सेहत) दे मगर शनि के हैडक्वाटर खाना नं 8 में, जो मंगल की मौतों का घर है, चन्द्र नीच हो जाता है। शुक्र ने शनि से आंख उधार ली है इसलिये शुक्र घर खाना नं 7 में शनि उच्च है। राहु बदी का एजेण्ट है मगर राहु के घर खाना नं 12 में शनि हरेक का भला ही करता है। केतु नेकी का फरिशता है मगर केतु के घर खाना नं 6 में शनि मन्दे लड़के और खोटे पैसे की तरह कभी न कभी काम आ ही जाने वाला मगर मन्दा ज़हरीला सांप होता है। इस तरह कुण्डली के जुदा जुदा खानों मे शनि का जुदा जुदा अच्छा या बुरा फल होता है। 
लाल किताब के मुताबिक राहु अगर मुल्ज़िम का चालान पेश करने का शहादती हो तो केतु उसके बचाने के लिये मददगार वकील होगा। दोनों के दरमियान बात का धर्मी फैसला करने के लिये शनि हाकिम, वक्त की कचहरी का सब से बड़ा जज होगा। पापी ग्रहों (राहु, केतु, शनि) ने दुनियावी पापियों गुनाहगारों को सीधे रास्ते पर लाने और गृहस्थी निज़ाम को कायम रखने के लिये अपनी ही पंचायत बना रखी है। इस बात के मद्दे नज़र रखते हुये ज़माने के गुरू और तमाम ग्रहों को पेशवा बृहस्पति ने शनि के घर खाना नं 11 में अपनी धर्म अदालत मुकर्रर की है। जहां शनि अपनी माता के दूध को याद करके, बृहस्पति का हल्फ उठाने के बाद राहु और केतु की शहादत के मुताबिक फैसला करता है। 
शनि खुद बुराई नही करता बल्कि उसके एजेण्ट राहु केतु बुराई वाले काम उसके पास फैसले के लिये लाते हैं। लिहाज़ा बुरो कामों के (बुरे) फैंसले करते करते शनि खुद बदनाम हो गया। लोग बदनाम को ही बुरा कहते हैं। अगर दुनिया में पाप न हो तो राहु कोई चालान पेश न करेगा। कर भी दे तो केतु की मदद से शनि का फैसला हक में होगा। फिर शनि को कोई बुरा भी न कहेगा।
मित्रो जल्द से जल्द अपनी कुंडली निकालें और देखें अगर आप की कुंडली में ऐसे योग हों तो एक अच्छे ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुश प्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल बनायें। उपाय बहुत सारे है । जिनको यहाँ लिख पाना संभव नही है और उनको अपने जीवन में उतारकर आप अपने जीवन को सुखमय बना सकते है। 
अगर आप गुडगाँव से दूर हैं तब भी आप मुझसे फ़ोन कॉल के माध्यम से अपनी कुंडली पर फलादेश और उपाय ले सकते हैं। साथ ही हमारा संस्थान आपकी कुंडली से सम्बंधित जानकारी जैसे फलादेश और उपाय कोरियर से आपके घर तक भेज सकतें है। 
जो सज्जनगन अपनी या अपने परिवार की जन्म कुंडली मुझे दिखा कर फलादेश के साथ बुरे ग्रहों की जानकारी लेना चाहता हो वह ईमेल द्वारा मात्र 2100.00 रुपया में पी डी ऍफ़ फाइल द्वारा प्राप्त कर सकते है और बुरे ग्रहों के उपाय जानना चाहतें हो और लाल किताब ज्योतिष सीखने के इच्छुक हों संपर्क करें। 
आचार्य हेमंत अग्रवाल 
ऍफ़ ऍफ़ 54, व्यापार केंद्र, सी ब्लॉक, सुशांत लोक, गुडगाँव 
फ़ोन : 01242572165, मोबाइल : 8860954309 
फेस बुक पेज पर आचार्य हेमंत अग्रवाल 
ईमेल : pb02a024@gmail.com 
सावधानी: कोई भी उपाय करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिशाचर्य से सलाह अवश्य लें

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