Sunday 27 September 2015

श्री जगन्नाथपुरी रथ यात्रा उत्सव




निशुल्क फलादेश एवं उपाए

अधिकतम फोल्लोवेर्स और फ्रेंड्स के आग्रह पर आचार्य हेमंत अग्रवाल (गुरुदेव जी. डी. वशिस्ट द्वारा लाल किताब शिक्षित, वैदिक एवं वास्तु शास्त्र के ज्ञाता ) आज से 06 जुलाई 2016  तक जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा समारोह  के उपलक्ष में निशुल्क फलादेश और उपाए ऑनलाइन देंगें। जो सज्जनगन अपनी या अपने परिवार की जन्म कुंडली आचार्य हेमंत अग्रवाल को दिखा कर फलादेश के साथ बुरे ग्रहों की जानकारी और बुरे ग्रहों के उपाय जानना चाहतें हो तो सुबह 09:00 बजे से दोपहर 02:00 तक फ़ोन  पर संपर्क करें और साथ ही जाने कि उपायों द्वारा कैसे बुरे ग्रहों के प्रभाव को कम करके अपने जीवन को अधिक से अधिक सुखमय बनाया जा सकता है ।
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। इस मंदिर के उद्गम से जुड़ी परंपरागत कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। यह इतनी चकचौंध करने वाली थी, कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा। मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूति दिखाई दी थी। तब उसने कड़ी तपस्या की और तब भगवान विष्णु ने उसे बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये। राजा ने ऐसा ही किया और उसे लकड़ी का लठ्ठा मिल भी गया। उसके बाद राजा को विष्णु और विश्वकर्मा बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए। किंतु उन्होंने यह शर्त रखी, कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परन्तु तब तक वह एक कमरे में बंद रहेंगे और राजा या कोई भी उस कमरे के अंदर नहीं आये। माह के अंतिम दिन जब कई दिनों तक कोई भी आवाज नहीं आयी, तो उत्सुकता वश राजा ने कमरे में झांका और वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया और राजा से कहा, कि मूर्तियां अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे। राजा के अफसोस करने पर, मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब दैववश हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगीं। तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गयीं।

यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवानजगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लस के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के ढेरों वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है। यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये खास महत्व रखता है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान की ओर आकर्षित हुए थे और कई वर्षों तक पुरी में रहे भी थे। ऐसी ही यात्रा का भव्य आयोजन गुडगाँव में भी किया जाता है।



आचार्य हेमंत अग्रवाल 

ऍफ़ ऍफ़ 54, व्यापार केंद्र, सी ब्लॉक, सुशांत लोक 1, गुडगाँव 

दूरभाष : 0124-2572165
Face Book Profile, Page & Group : Acharya Hemant Aggarwal
ईमेल : pb02a033@gmail.com 
सावधानी: कोई भी उपाय करने से पहले हमारे गुडगाँव  में ज्योतिषाचार्य से सलाह अवश्य लें। प्रभु जगन्नाथ जी  की कृपा सदा आप पर बनी रहे ।
विशेष सूचना : जो भी श्रदालु इस उत्सव में अपना सहयोग देना चाहता हो वह ऊपर दिए फ़ोन नंबर पर संपर्क करें।