Sunday 26 April 2015

बृहस्पत दो जहान का मालिक .....

जय माता दी !
गुरुदेव जी डी वशिस्ट के आशीर्वाद से ………
मित्रों आप सब को आचार्य हेमंत अग्रवाल का नमस्कार। मित्रों मैं आप सब का धन्यवाद करता हूँ कि आप सब समय निकाल कर मेरे आर्टिकल्स पड़ते हैं और उनसे अधिक अधिक लाभ उठाते हैं। अगर आप सब को आर्टिकल्स में किसी सब्जेक्ट के बारे में और अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो आप निसंकोच मुझसे संपर्क कर सकते हैं। जो कि मुझे आर्टिकल्स को और भी बेहतर बनाने में उत्साहित करेगा। मित्रों अगर आप की ज़िंदगी में कोई भी समस्या चल रही है और आप उससे निजाद पाना चाहते है तो मुझे ज़रूर लिखें और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी आप लोगों को मुहैया करवा सकूँ।

मित्रों आज मैं बृहस्पति देव के बारे में चर्चा करने जा रहा हूँ। इस पोस्ट में मैं बृहस्पति देव के कुंडली में अलग अलग घरों में अच्छे और बुरे प्रभावों के बारे में बताऊँगा। अगर आप की कुंडली में भी ऐसे योग हों या बृहस्पति से सम्बंधित निचे लिखे हुए हालत हों तो अच्छे ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुश प्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल करें। 
गुरु (बृहस्पत) 
कुछ लाल किताबकार के अनुसार  लाल किताब में गुरु को सूर्य से भी अधिक मह्त्व दिया गया है। सूर्य सौर मंडल का शासक देवता है तो गुरु देवताओं का गुरु है। भारतीय परम्परा में शासक भी गुरु के शासन में रहते आये है। ज्योतिष में नौ ग्रहो को काल पुरुष के विभिन्न अंगो का प्रतिनिधित्व दिया गया है। इस अंग-विभाजन में लाल किताब ने गुरु को काल पुरुष की गर्दन पकड़ा दी। काल की गर्दन जिसके हाथ में हो उसका मह्त्व किसे स्वीकार नही होगा !
लाल किताब ने गुरु को आकाशवत् माना है जिसमें हवा मुक्त विहार करती है। इह लोक और परलोक दोनों समाहित है। वह भौतिक और आध्यत्मिक जगत का नियमन करता है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु धनु और मीन राशि का स्वामी है। लाल किताब में वह 9 और 12 भावों का स्वामी है। कुंडली के 2, 5, 9, 11 भावों का कारक है। भचक्र की बारहवीं राशि और कुंडली का बाहरवां भाव गुरु और राहु की सांझी गद्दी माना गया है।  बाहरवें भाव में गुरु -राहु टकराते है तो गुरु भारी पड़ता है, राहु नत होकर इह -लोक का मनुष्य बन जाता है।
अन्य ग्रहो की भांति गुरु के भी मित्र और शत्रु है। सूर्य, चन्द्र, मंगल उसके मित्र है। बुध और शुक्र शत्रु  है। विशेष स्थितीयों में शत्रु ग्रह भी गुरु को मान देते है। गुरु का शत्रु होते हुए भी बुध 2, 5, 9, 11 भावों में गुरु के फल देता है। बुध इन भावों में रवि, शुक्र और शनि का विरोध नही करता। इस ग्रह का फल बहुत कुछ उसकी भाव-स्तिथि पर निर्भर है। गुरु बलहीन होने पर बुध के समान आचरण करने लगता है। तब यदि बुध, शुक्र, शनि और राहु-केतु से उसका किसी भी प्रकार का सम्बन्ध हुआ तो वह शुभ फल नही देता। 
ग्रहों के पेंतीस साला दौरे में लाल किताब ने गुरु को छः वर्ष दिए है। कुंडली के 6, 7 भावों में वह राशि -फल का ग्रह होता है। सम्यक उपचारों से गुरु के फल की अशुभता दूर हो जाती है।
गुरु का अधिदेव ब्रह्मा जी है। पीतल धातु और गोमेद रत्न है। धर्म - स्थानों में गुरु का निवास माना गया है। व्यवसाय से वह सुनार है। वह बाप, दादा और कुल पुरोहित का प्रतिनिधित्व करता है। वह पीपल का मालिक माना गया है। केसर, कुंकुम, हल्दी और चने की दाल गुरु की वस्तुए मानी गयी है। सम्यक शांति और पूजा - पाठादि उपचारों द्वारा गुरु के 9, 12 भावों को जाग्रत किया जा सकता है।
दो रंगी दुनिया के रंग दोनों देखो 
मगर आँख दुःख जाये, अपनी न देखो 
कुछ लाल किताबकार के अनुसार लाल किताब में गुरु को सूर्य से भी अधिक मह्त्व दिया गया है। अगर बृहस्पति के पीला (ज़रद) रंग, ज़माने के शेर ने इन्सानी गुरू के चरणों में सोने (नींद) से दुनिया को सोना (धात) बख्शा तो केसर ने दुनिया को खुशी की मौत सिखाई। बृहस्पति..... श्री ब्रह्म जी महाराज, दोनो जहां और त्रिलोकी के मालिक।
इन्सान की मुट्ठी के अन्दर के खाली खलाव में बंद या आकाश में फैले रहने, हर दो जहां में जा आ सकने और तमाम ब्रह्माण्ड व इन्सान के अन्दर बाहर चक्र लगाने वाली हवा को ग्रह मण्डल में बृहस्पति के नाम से याद किया गया है। जो बन्द हालत में कुदरत से साथ लाई हुई किस्मत का भेद और खुल जाने पर अपने जन्म से पहले भेजे हुये खज़ाने का राज और बंद और खुली हर दो हालत की दरमियानी हद इन्सान शरीफ के शुरू (जन्म लेने) व आखीर समय (वफ़ात पाने) का बहाना होगी। यह ग्रह तमाम ग्रहों का गुरू और दिखने वाली (ज़ाहिरा) व गुप्त (गैबी), दोनों जहां का मालिक माना गया है। इसलिये एक ही घर मे बैठे हुये बृहस्पति का असर बेशक समान (मानिन्द) राजा या फकीर, सोना या पीतल, सोने की बनी हुई लंका तक दान कर देने वाला प्राणी या सारे ज़माने का चोर साधु जिसका धर्म ईमान न हो, हर दो हालत में से ख्वाह किसी भी ढंग का हो मगर उसका बुरा असर शुरू होने की निशानी हमेशा सनीचर के मन्दे असर के ज़रिए होगी और नेक असर खुद बृहस्पति के ग्रह के सम्बंधित (मतल्ल्का) चीज़ें (अश्या), कारोबार या रिश्तेदार सम्बंधित (मतल्ल्का) बृहस्पति के द्वारा (ज़रिए) स्पष्ट (ज़ाहिर) होगा। 
नर ग्रहों (सूरज या मंगल) के साथ या दृष्टि वगैरह से मिलने पर मामूली तांबा भी सोने का काम देगा। स्त्री ग्रह (शुक्र या चन्द्र) के साथ या दृष्टि के ताल्लुक से मिट्टी से भरा हुआ पानी भी उत्तम दूध का काम देगा। बृहस्पति के बगैर तमाम ग्रहों में मिलने जुलने की या दृष्टि की ताकत पैदा न होगी। पापी ग्रह (राहु, केतु, शनीचर) मन्दे होने पर बृहस्पति सोने की जगह पीतल, मिट्टी, हवा की जगह ज़हरीली गैस का मन्दा असर देगा। बृहस्पति और राहु दोनों खाना नं 12 (आसमान) में इकट्ठे ही माने गये हैं। 
बृहस्पति दोनों जहां (गुप्त (गैबी) व स्पष्ट (ज़ाहिरा) का मालिक है जिसमें आने और जाने के लिए नीले रंग में राहु का आसमानी दरवाज़ा है। इसलिए जैसा यह दरवाज़ा होगा वैसा ही हवा के आने जाने का हाल होगा। अगर राहु टेडा चलने वाला हाथी , सांस को रोकने वाला कड़वा धुआं या ज़मीन को पताल से भूंचाल बनकर हिलाता रहे तो बृहस्पति भला नही हो सकता। लेकिन अगर राहु उत्तम और मददगार दरवाज़ा हो तो बृहस्पति कभी बुरा न होगा। 

हर तरफ से अकेला बृहस्पति चाहे (ख्वाह) वह दृष्टि वगैरह से कितना भी मन्दा होवे पर टेवे वाले पर कभी मन्दा असर न देगा। बरबाद हो चुका बृहस्पति आम असर के लिए खाली बुध गिना जायेगा। जिसका फैसला बुध के जाति सुभाव के असूल पर होगा। दुश्मन ग्रहों (बुध, शुक्र, राहु या सनीचर क्षमतानुसार (बहैसियत) पापी ग्रह यानि जब सनीचर को राहु या केतु किसी तरह भी सामने (बरूये) दृष्टि या साथ वगैरह से आ मिलते हों ) के वक्त मन्दा हो जाने की हालत में बृहस्पति ज़्यादातर (अमूमन) बुध का असर देगा और बृहस्पति का मन्दा असर उपाए के लिए सक्ष्म (काबिले उपाय) होगा । जिसके लिये साथी दुश्मन ग्रह का उपाय मदद देगा। 

ग्रह मण्डल में सब ग्रहों में छेड़छाड़ करने कराने वाले दुनियावी पाप (सिर्फ दो ग्रह राहु केतु का दूसरा नाम) को चलाने वाला बृहस्पति है। गोया राहु केतु के पाप करने की शरारत से पहले बृहस्पति खुद अपनी चीज़ें (अश्या) या कारोबार या रिश्तेदार सम्बंधित (मतल्लका) बृहस्पति के ज़रिए खबर दे देगा। जिसके लिए ख्याल रहे कि 

''असर जलता दो जहां का, ग्रहण शत्रु साथी जो ।

चोर बना 6 ता 11, मंगल टेवे ज़हरी जो ॥''
गुरु के सामान्य उपचार
विभिन्न भावो में गुरु के अशुभ फल देते देने पर निम्नांकित उपचार, प्रभावी होते देखे गए है :
लग्न - 
  1. ऋण पितृ के लिए निर्दिष्ट उपचार।
  2. किसी से दान या मदद स्वीकार ना करें। अपने ही भाग्य पर भरोसा रखे।
द्वितीय भाव - 
  1. घर के सामने सड़क के गड्डे भरना।
  2. केसर और हल्दी का तिलक लगाना।
तृतीया भाव - 
  1. दुर्गा पूजा करना।
  2. बड़ों की सेवा करना 
चतुर्थ भाव - 
  1. अपनी बनियान पर लाल निशान लगाये रखें।
  2. बड़ों की सेवा करना।
  3. किसी के सामने स्नान न करना ,अंग प्रदर्शन न करना।
  4. पूजा स्थानो पर जाकर पूजा करना।
  5. कुल -पुरोहित का आशीर्वाद प्राप्त करना।
  6. पीपल का वृछ लगाना और उसे सींचना।
पंचम भाव - 
  1. दान स्वीकार न करना। मंदिर का प्रसाद भी न लेना।
  2. किसी से मुफ्त में कोई वस्तु न लेना।
  3. सिर पर चोटी रखना।
  4. साधुओं की सेवा करना पूजा स्थानों ली सफाई करना। 
षष्ठ भाव - 
  1. गुरु से संभंधित वस्तुए मंदिर में अर्पण करना।
  2. बच्चों के साथ में या उनकी सलाह से व्यापर करना।
  3. मुर्गो को दाना देना या पालन करना।
  4. मंदिर के पुजारी को वस्त्र देना।
सप्तम भाव - 
  1. घर में तुलसी माला या देव -प्रतिमा न रखना। दीवारों पर चित्रलगा सकते है।
  2. सोना या सोने के गहने पीले वस्त्र में बांधकर पास में रखना।
  3. पीताम्बर धारी साधुओ से दूर रहना।
अष्टम भाव - 
  1. आभूषण पहनना।
  2. पुजालयों को घी, दही, आलू और कपूर देना।
  3. भिकारी निराश न लौटे।
नवम भाव - 
  1. पवित्र गंगा में स्नान करना। गंगा जल पीना।
  2. तीर्थ स्थानों में जाना और तीर्थ यात्रा के लिए दूसरो की मदद करना।
  3. सच बोलो धार्मिक बनो।
दशम भाव - 
  1. काम सुरु करने से पहले नाक साफ़ करे।
  2. 43 दिन प्रतिदिन बहते पानी में ताम्बे का सिक्का डालें।
एकादशं भाव - 
  1. पीला रुमाल रखें।
  2. पिता द्वारा प्रयोग किये हुए पलंग और कपड़ों का प्रयोग करें।
  3. पीपल के पेड़ को पानी दे। 
द्वादश भाव - 
  1. झूटी गवाही दें।
  2. किसी ठगे नही।
  3. गुरु ,साधु और पीपल की सेवा करें।
सामान्य उपचार : सब भावों के लिए
  1. गुरुवार का व्रत करें।
  2. हरी की पूजा या पीपल को पानी दें।
  3. गोमेद पहनना या हल्दी का टुकड़ा पीले धागे से दाहिनी बाजूपर बांधना।
  4. चांदी के बर्तन पर हल्दी का तिलक लगाकर रखना।
  5. ब्राह्मण ,साधू और कुल गुरु की सेवा करना। 
  6. गरुड़ पुराण का पाठ करना।
  7. पीले फूलों के पौधे लगाना।
  8. गुरु नीच का या छुब्ध हो तो उससे सम्बंधित वस्तुए दान देना।

मित्रो जल्द से जल्द अपनी कुंडली निकालें और देखें अगर आप की कुंडली में ऐसे योग हों तो एक अच्छे ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें और उपायों द्वारा बुरे योगों के दुश प्रभाव को कम करने का प्रयास करें और अपने जीवन को अधिक से अधिक खुशहाल बनायें। उपाय बहुत सारे है । जिनको यहाँ लिख पाना संभव नही है और उनको अपने जीवन में उतारकर आप अपने जीवन को सुखमय बना सकते है।
अगर आप गुडगाँव से दूर हैं तब भी आप मुझसे फ़ोन कॉल के माध्यम से अपनी कुंडली पर फलादेश और उपाय ले सकते हैं। साथ ही हमारा संस्थान आपकी कुंडली से सम्बंधित जानकारी जैसे फलादेश और उपाय कोरियर से आपके घर तक भेज सकतें है। 
जो सज्जनगन अपनी या अपने परिवार की जन्म कुंडली मुझे दिखा कर फलादेश के साथ बुरे ग्रहों की जानकारी लेना चाहता हो वह ईमेल द्वारा मात्र 2100.00 रुपया में पी डी ऍफ़ फाइल द्वारा प्राप्त कर सकते है और बुरे ग्रहों के उपाय जानना चाहतें हो और लाल किताब ज्योतिष सीखने के इच्छुक हों संपर्क करें। 
आचार्य हेमंत अग्रवाल 
ऍफ़ ऍफ़ 54, व्यापार केंद्र, सी ब्लॉक, सुशांत लोक, गुडगाँव 
फ़ोन : 01242572165, मोबाइल : 8860954309 
फेस बुक पेज पर आचार्य हेमंत अग्रवाल
ईमेल : pb02a024@gmail.com 
सावधानी: कोई भी उपाय करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिशाचर्य से सलाह अवश्य लें। 
माता रानी सब को खुशीआं दे।

1 comment:

  1. Your comment is very beneficial for the future, you have written in a very beautiful way, you have an inspiration for the youth who come to your comment is really very beautiful, nowadays children do not know where they are wandering, no one can make a comment like you. The post is very different.
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