Friday 1 May 2015

खाना न 12 - इन्साफ (मगर इन्साफ करने कराने की जगह नहीं) ......


जय माता दी । 
गुरुदेव जी० डी० वशिष्ट के आशीर्वाद से……… 
मित्रों आप सब को आचार्य हेमंत अग्रवाल का नमस्कार। मित्रों मैं आप सब का धन्यवाद करता हूँ कि आप सब समय निकाल कर मेरे आर्टिकल्स पड़ते हैं और उनसे अधिक अधिक लाभ उठाते हैं। अगर आप सब को आर्टिकल्स में किसी सब्जेक्ट के बारे में और अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो आप निसंकोच मुझसे संपर्क कर सकते हैं। जो कि मुझे आर्टिकल्स को और भी बेहतर बनाने में उत्साहित करेगा। मित्रों अगर आप की ज़िंदगी में कोई भी समस्या चल रही है और आप उससे निजाद पाना चाहते है तो मुझे ज़रूर लिखें और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी आप लोगों को मुहैया करवा सकूँ। 
कुछ लाल किताबकार के अनुसार :
द्वादश भाव
यह कुंडली का आखिरी भाव होता है। यही एक अवतार समाप्त होकर दूसरा आरम्भ होता है। - एक जन्म से दूजा सुरु हो।
लाल किताब में द्वादश भाव को इंसाफ, आरामगाह, ख्वाब अवस्था और इन्साफ का घर कहा गया है। इस भाव के स्वामी गुरु और राहु है तथा कारक अकेला राहु है। इस भाव् से स्त्री - सुख के सम्बन्ध में विचार किया जाता है। यह व्यवस्था ज्योतिष शास्त्र से मेल नही खाती। परंपरागत ज्योतिष के अनुसार द्वादश का कारक केतु है और इस भाव से जीवात्मा की अंतिम परिणीति अर्थात मोक्ष के संबंध में विचार किया जाता है। द्वादश की अपनी दृष्टि किसी भाव पर नही होती। छटा भाव द्वादश को देखता है, किन्तु द्वादश की अपील होती है द्वितीय में - घर बारह में जो ग्रह बोले, घर दो में वो बोलता है।
लाल कितबार ने एकादश और द्वादश भावों को न्याय के स्थान कहा है। प्रथम भाव को राजा और द्वितीय को वजीर माना गया है। प्रथम भाव के ग्रह आयु पर्यन्त कुंडली के सब ग्रहों का फैसला ग्यारहवें घर में होता है और उसकी अपील प्रथम घर में होती है। 
प्रथम भाव के ग्रह की आयु समाप्त हो जाने के बाद सब ग्रहो का फैसला बारहवें भाव में होता है और उसकी अपील दूसरे घर में होती है। 
यह लाल किताबकार का उक्ति वैचित्र्य है। सीधी बात यह है कि सब ग्रहों के शुभाशुभ फल पर विचार करने के बाद जातक के जीवन की सफलता और जीवात्मा की अंतिम परिणित के सम्बन्ध में एकादश भाव की शुभअशुभता के आधार पर निर्णय करना चाहिए। उसमे भी यदि कोई अंतर्विरोध या शंका दिखाई दे तो प्रथम भाव की शुभाशुभता के आधार पर संशोधन करके अंतिम निर्णय लेना चाहिए। प्रथम भाव के ग्रह की आयु समाप्त हो जाने के बाद ये ही निर्णय द्विर्द्वादश भावों से करने चाहिए । इस अर्थ में द्वादश भाव जातक की चारित्रिक उपलब्धियों का भाव है । यदि 2 , 6 ,8 खाली न हों तो जातक सच्चरित्र होता है। 
यदि बारहवें में बैठा हुआ ग्रह आठवें में बैठे हुए ग्रह का शत्रु न हो और 2, 8 खाली न हो तो जातक प्रतिभावान होता है। 
यदि जीवन को चार भागों में विभाजित करके सम्यक अध्यन किया जाये तो यह जाना जा सकता है की जातक 1-3, 4-6, 7-9, 10 -12 भावों के मामलों में क्या क्या उपलब्धियां हासिल करेगा। 
द्वादश भाव के अनिष्ट का निवारण करने के लिए प्रथम भाव का उपचार करना चाहिए। यदि प्रथम खाली हो तो द्वितीय के ग्रहों का उपचार करना चाहिए। 
द्वादश के ग्रह से जुड़े हुए रिश्तेदार जातक को सुख आराम देते है। उन रिश्तेदारों की मृत्यु के बाद उस ग्रह की वस्तुए पास में रखने से सुख आराम मिलेगा। उदहारण से जन्म कुंडली में बारहवें भाव में बृहस्पति बैठा होतो पिता और दादा जातक को सुख आराम देंगे । उनके देहांत के बाद बृहस्पति की वस्तुए अपने पलंग के नीचे रखने से सुख मिलेगा । दूसरा भाव खाली हो और आठवें तथा बारहवें में मंदा फल देने वाले ग्रह बैठे हों तो जातक को मंदिर नही जाना चाहिए । ऐसा करने से अनिष्ट करने वाले ग्रह टकराएंगे और उनसे सम्बंधित रिश्तेदार का अनिष्ट होगा । उदाहरणार्थ आठवें में शनि हो और बारहवें में बुध हो । ये दोनों टकराएंगे तो जातक की बेटी की आँखों की बिनाई पर बुरा असर पड़ेगा क्योंकि बुध बेटी का कारक है ।
भावों से सम्बंधित पशु -पक्षी ,पेड़ -पौधे ,सम्बन्धी आदि वस्तुए अगले पोस्ट में लिखें गे। 

लाल किताब तरमीम शुदा 1942 में लिखा है : 
’’घर 12 न ग्रह जो बोले, घर 2 में वह बोलता है;
फल घर 12-2 का इकट्ठा, साधु समाधि होता है।’’
लगन से कुंडली का पक्का घर खाना नं 12 - इन्साफ (मगर इन्साफ करने कराने की जगह नहीं), आरामगाह, ख्वाब - अवस्था इंसान का सिर : 
इसी असूल के हौसला पर इन्सान 12 राशियों के 12 साल को गुज़ारता है कि आखीर कभी न कभी 12 साल के बाद ही मालिक (बृहस्पत) सुन ही लेगा और यह सच है कि 12 साल के बाद सब की अमूमन सुनी जाती है और फिर वही बृहस्पत का ज़माना बदलने को खाना नम्बर 1 का सूरज निकल आता है। कुण्डली का खाना नम्बर 12 इन्साफ (मगर इन्साफ करने कराने की जगह नहीं), आरामगाह, बृहस्पत राहू की मुश्तर्का 

बैठक है। यह मैदान (सहन) है नम्बर 6 का और 6 का न्यायकर्ता (मुन्सिफ) होगा केतु। ज़र्द नीला 

मगर जुदा जुदा, बृहस्पत की दो जहां की ताकत का फैसला राहु से होगा।
  1. कुण्डली के तमाम ग्रहों की अपील खाना नम्बर 12 पर होगी। यानि खाना नम्बर 12 का फैसला सबसे आखिरी फैसला होगा। अगर खाना नम्बर 12 के लिए खुद अपनी अपील की ज़रूरत हो तो खाना नम्बर 2 पर होगी या खाना नम्बर 12 के जाति ताल्लुक खाना नम्बर 2 का फैसला सबसे आखिरी फैसला होगा। 
  2. नम्बर 12 के लिए नम्बर 1 के ग्रह की उम्र गुज़रने के बाद नम्बर 2 अपील का काम देगा। जिसका आखिरी न्यायकर्ता (मुन्सिफ) केतु होगा। अगर नम्बर 1 खाली हो या नम्बर 1 के ग्रह की उम्र के बाद नम्बर 1 खाली हो जावे तो सब से आखिरी न्यायकर्ता (मुन्सिफ) चन्द्र होगा। लेकिन नम्बर 1 की उम्र के अन्दर अन्दर आखिरी शासक (हाकिम) हमेशा नम्बर 1 का ग्रह ही होगा।
  3. नम्बर 12 के ग्रह का सम्बंधित (मुताल्लिका) रिश्तेदार कुण्डली वाले के आराम पैदा करने के अम्बंध (ताल्लुक) में इश्वरिये (खुदाई) ताकत का मालिक होगा। जिसके बाद उस ग्रह की सम्बंधित (मुताल्लिका) चीज़ें (अश्या) स्थापित (कायम) करने से सुख सागर होगा। उदाहरण के तौर पर (मसलन्) बृहस्पत नम्बर 12 हो तो बाप, बाबा ज़िंदा होने के वक्त तक कुण्डली वाले की रात हमेशा आराम से गुज़रेगी। उनकी मृत्यु (वफ़ात) के बाद बृहस्पत की चीज़ें (अश्या) रात के समय (बावक्त रात) स्थापित (कायम) रखना आराम देगा।
  4. नम्बर 8 मन्दा और नम्बर 2 खाली हो या जब नम्बर 12 और नम्बर 8 दोनों ही घरों में ऐसे ग्रह हों जो इकट्ठे हो जाने पर मन्दे हो जावें तो मन्दिर से दूरी बेहतर वर्ना खाना नम्बर 8-12 की मन्दी टक्कर होगी। 
  5. उदाहरण के तौर पर (मसलन्) बुध नम्बर 8 सनीचर नम्बर 12 तो लड़की की बीनाई बर्बाद जब मन्दिर में जावे। कुण्डली का खाना नम्बर 12 जि़न्दगी में आराम की हालत बतलायेगा। अगर इस खाने में कोई मन्दा ग्रह बैठ जावे तो दिन भर काम, रात को बेआराम और बिना वजह बदनाम वाला हाल होगा।
इकट्ठे (मुश्तरका) खाने : 
  1. खाना नं 6 में जब केतु को माना था तो उसका दूसरा साथी राहु खाना नं 12 में और बृहस्पत दोनों (राहु-केतु) को चलाने वाला खाना नं 2 में बैठा है 
  2. खाना नं 2 में बृहस्पत है और गुरुद्वारा इस में खाना नं 8 का असर आया।  खाना नं 8 पापी ग्रहों की (तीनो ही राहु केतु शनि की) बैठक है और खाना नं 2 सिर्फ राहु केतु की बैठक है। यानि जब खाना न 8 का असर 2 में जावे तो शनि का बुरा असर साथ लेंगे। 
  3. लेकिन जब खाना न 2 का असर खाना न 6 में जावे तो सिर्फ राहु केतु का असर चला (इसी वज़ह से खाना न 2 को शुक्र की राशि माना है। क्योंकि राहु केतु मुश्तरका सिर्फ हवाई शुक्र के घर को ही हवा का मालिक बृहस्पत सम्भाल सकता है) । 
  4. खाना न 6 से जब खाना न 12 में असर गया तो खाना न 6 में से बुध का असर भी मिला हुआ पाया जो आकाश व गोल दायरा का मालिक है। 
इस तरह खाना न 8-2-6-12 में हर तरह का झगड़ा हुआ। पाताल और आकाश में हर तरफ बुध व बृहस्पत की चारों तरफ घूम लेने वाली गांठ में शनि के चारों तरफ मार कर लेने की ताकत खड़ी हो गई। बुध और बृहस्पत ने भी सूर्य और शनि दोनों का ही साथ दिया। गो वह दोनों बुध और बृहस्पत आपस (बाहम) दुश्मन है। इन चारों तरफों की ताकत वाला खाना न 4 चन्द्र को मिला जिसमें नेकी की सिफत हुई। मंगल बद ने खाना न 4 में और शनि ने चन्द्र से जो खाना न 4 का मालिक है अपनी दुश्मनी के सुभाओ का सबूत दिया। इस चक्र के बुरे और भले हो जाने के कारण (सबब) से चन्द्र ने सब की उम्र की ताकत अपने काबू कर ली और सब की उम्र का मालिक हुआ और समय ही के सफर में अपना असर डालने की ताकत पकड़ी। 
निम्नलिखित ग्रह टेवे में चाहे किसी भी घर में इकट्ठे हों जावें तो उनके सामने दिए हुए खाना न का असर पैदा हो जायेगा। 


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