''हाथ रेखा को समुद्र गिनते, नजूमे फलक का काम हुआ,
इल्म क्याफा ज्योतिष मिलते, लाल किताब का नाम हुआ ।''
जय माता दी !
गुरुदेव जी डी वशिस्ट के आशीर्वाद से ………
लाल किताब के एक बहुत अच्छे जानकार ने लिखा कि लाल किताब के इस शेयर पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि इल्म, क्याफा और ज्योतिष के संगम को लाल किताब कहा गया है। इस किताब के पांच हिस्से सन् 1939 और 1952 के दरमियान उर्दू ज़ुबान में छपे। सन् 1952 वाले आखिरी हिस्से को मुकम्मल लाल किताब कहा जा सकता है। हालांकि किताब पर लेखक का नाम नही है मगर इसमें कोई शक नही कि लाल किताब की रचना आलिम पंडित रूप चन्द जोशी जी ने की थी।
पंडित जी फौज से असिस्टैंट अकाउंट अफसर रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव फरवाला, तहसील नूरमहल, ज़िला जालन्धर, पंजाब में रहते थे। पहली बार उनसे वे 1975 में मिले। फिर मुलाकातों का सिलसिला कुछ साल जारी रहा। उनके ताया जी की वजह पंडित जी उनपर मेहरबान रहे। उनसे कई मुलाकातें हुई और बेशुमार बातें हुई। लाल किताब भी उनको पंडित जी ने ही दी थी। जिसे वे उनका आर्शीवाद समझते थे। किताब को पढ़ने समझने के लिए उनको बकायदा उर्दू सीखना पड़ा । लाल किताब क्या है ...गागर में सागर है।
पंडित जी का कुण्डली देखने का तरीका भी अलग था। पंडित जी लाल कलम से जो लिख देते थे वह अक्सर पूरा हो जाता था। इस इल्म को शायद ही कोई ओर समझा हो। दरअसल पंडित जी एक गैर मामूली इन्सान थे। लाल किताब भी गैबी ताकत से उर्दू ज़ुबान में लिखी गई थी। उनके पूछने पर पंडित जी ने खुद बताया था, ''पता नही कौन मुझे लिखाता रहा।'' शायद यही वजह रही कि किताब पर लेखक का नाम नही है।
वक्त के साथ-साथ लाल किताब इतनी मकबूल हुई कि आज बाज़ार में नकल या नकली किताबों की बाढ़ सी आ गई है और असली लाल किताब उर्दू वाली कहीं नज़र नही आती।
लाल किताब के बारे कुछ सवाल उठते हैं। जैसे असली किताब उर्दू वाली पर लेखक का नाम नहीं है। खोज़ करने पर पता चला कि मरहूम पण्डित रूप चन्द जोशी जी किसके जन्मदाता थे। उनके जीवनकाल में बहुत कम लोग लाल किताब या पण्डित जी के बारे में जानते थे। पंजाब के बाहर तो लाल किताब का कोई वजूद न था। समय गुज़रता गया। पण्डित जी के इंतकाल के कुछ साल बाद लाल किताब के बारे में कुछ पता लगने लगा जब हिन्दी में नकल या नकली किताबें बाज़ार में आने लगी और वह भी लेखक के नाम के साथ। फिर एक दो किताबें ऐसी भी आईं जिनके बारे दावा किया गया कि वह असली लाल किताब का हिन्दी रूपान्तर हैं। नकली किताबों की इस भीड़ में असली किताब तो पहले ही गायब हो गई थी। अब तो बस नकली का बोलबाला है। लेकिन नकल में असल की खुशबू कहां ?
जानकर को कई बार पण्डित जी से मिलने का मौका मिला। वह कुण्डली देखने के पैसे नही लेते थे। हालांकि वह कोई अमीर आदमी न थे। फौज में नौकरी ज़रूर की थी। वह गिने चुने लोगों की ही कुण्डली देखते थे। अगर लाल कलम से कुछ लिख देते थे तो वह अक्सर पूरा हो जाता था। उनके जीवन काल में ही एक आदमी उनके गांव फरवाला में लाल किताब लेकर बैठ गया और कुण्डली देखने के पैसे लेने लगा। पण्डित जी को बुरा लगा और गुस्सा भी आया। पण्डित जी के इन्तकाल के बाद उस आदमी का काम चलने लगा। रफता रफता लोग उसे ही लाल किताब वाला ज्योतिषी समझने लगे। आज कुछ ज्योतिषी फख़र से कहते हैं कि वह पण्डित जी से मिले थे। दर असल वह पण्डित जी से नही उस आदमी से मिले थे।
हैरत की बात है कि एक आम आदमी ने ज्योतिष की एक खास ओ खास गैर मामूली किताब लिख डाली। एक नई चीज़, गागर में सागर, एक अनोखी किताब जो किसी आम आदमी का काम नही हो सकता। ऐसा काम तो कोई खुदा रसीदा इन्सान ही कर सकता है। इसके बावजूद दौलत और शोहरत पण्डित जी से दूर रही। समय के साथ साथ लाल किताब मकबूल हुई।
सोचने की बात है कि जिस नेक इन्सान ने लाल किताब जैसी ज्योतिष की अनोखी किताब लिखी उसे दुनिया में दौलत और शोहरत न मिली। आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसका जवाब पण्डित जी की कुण्डली ही दे सकती है। अगर लाल किताब के किसी तालिब ने उनकी कुण्डली देखी हो तो वह ग्रहों का खेल समझ ही गया होगा।
'' समा करे नर क्या करे, समा बड़ा बलवान,
असर ग्रह सब पर होगा, परिन्द पशु इन्सान।''
लाल किताब उर्दू ज़ुबान में लिखी गर्इ थी। हालांकि किताब पर लेखक का नाम नही है पर इसकी रचना आलिम पंडित रूप चन्द जोशी जी ने की थी। पहली किताब सन 1939 में छपी थी, जिस पर लिखा है, हथेली की लकीरों से जन्म कुण्डली बनाने और जिंदगी के पूरे हालात देखने के लिए सामुद्रिक की लाल किताब। इस किताब में हथेली की लकीरों, बुर्जों और दूसरे निशानात का जिक्र किया गया है। वैसे तो यह हस्त रेखा की किताब है मगर इसमें ग्रहों का ज़िक्र भी आता है।
आखिरी किताब सन 1952 में छपी थी, जिस पर लिखा है, जितवसवहल इेंमक वद च्ंसउपेजतल इल्मे सामुद्रिक की बुनियाद पर चलने वाली ज्योतिष की मदद से हाथ रेखा के ज़रिए दुरूस्त की हुर्इ जन्म कुण्डली से ज़िंदगी के हालात देखने के लिए लाल किताब। इस किताब में कुण्डली के 12 खानों, 9 ग्रहों और ज्योतिष दूसरे उसूलों का ज़िक्र विस्तार (तफ़सील) में किया गया है। ग्रहों के अलावा रेखा का भी ज़िक्र आता है। मसलन सनीचर खाना नं. 1 हो तो काग रेखा (गरीबी) की बात आती है। इसी तरह, केतु तीजे मंगल बारां , मच्छ सहायक (मुआविन) दोनों तारां। यानि केतु कुण्डली में खाना नं. 3 और मंगल खानां नं. 12 हो तो, मच्छ रेखा, गरीब को धन और अमीर को वालिए तख्त, हरदम बड़े परिवार, लोह लंगर सवाया। (इस के बारे में भविष्य में आने वाले आर्टिकल्स में और विस्तार से वर्णन करूंगा |) सहायक (मुआविन), उम्र रेखा, कब्र से ज़िन्दा वापिस आवे या फांसी लटके के पांव के तले तख्ता देना तांकि गला न घुट जावे। बिन बुलाए मददगार आ हाजि़र हों। ज़मीन और आसमान के दरमियान सब दुश्मन छुपकर गुफाओं (गारों) में गुज़ारा करेंगे, मंगल की मदद पर होंगे ख्वाह कैसे ही बैठे हों।
लाल किताब में हथेली से कुण्डली बनाने की बात की गर्इ है। मसलन सूरज के बुर्ज पर चौकोर का निशान हो तो मंगल कुण्डली में खाना नं. 1 हुआ। चन्द्र के बुर्ज से रेखा सीधी वृहस्पत के बुर्ज पर जाये तो चन्द्र खाना नं. 2 हुआ। मंगल नेक के बुर्ज पर केतु का निशान हो तो केतु खाना नं. 3 हुआ। शुक्र के बुर्ज पर राहु का निशान हो तो राहु खाना नं. 7 हुआ वगैरह वगैरह । इस तरह बनार्इ गर्इ कुण्डली से ज़िन्दगी का हाल देखने की बात की गर्इ है। पर हथेली से जन्म कुण्डली बनाना कोर्इ आसान काम नही है।
किस्सा कोताह हस्त रेखा में ग्रहों का ज़िक्र और ग्रहों में हस्त रेखा की बात आती है। इससे साफ ज़ाहिर है कि लाल किताब का हस्त रेखा से गहरा ताल्लुक है। दूसरे लफज़ों में हस्त रेखा ही लाल किताब की बुनियाद है। पैदायश का वक्त मालूम न होने की सूरत में हथेली से जन्म कुण्डली बनाकर ज़िंदगी का हाल देखा जा सकता है। अगर ज़रूरत पड़े तो मन्दे ग्रह का उपाय भी किया जा सकता है।
लाल किताब के एक और जानकार लिखते हैं कि आज के खोज - शास्त्रों में एक 'लाल किताब ' नाम की 1180 पृष्ठ की उर्दू में लिखी किताब का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। इस किताब में स्वर्गीय पंडित रूपचंद जी के अध्यन को कलम बंद किया गया है। आज पंडित जी इस दुनिया में नहीं हैं। आज इस किताब के बारे में बातें करके जितना कुछ जान सके, उतना उन्होने अपने लेखों में दर्ज किया है। दुनिया में दो ही 'लाल किताबें' मशहूर हैं, एक माओ जे तुंग की, और दूसरी ज्योतिष शास्त्र की। ब्रिटेन में जिसे कानून की प्रामाणिक किताब माना गया है, उसका नाम लाल किताब है। माओ जे तुंग ने भी अपनी विचार धारा को प्रामाणिकता का अर्थ देने के लिए यह नाम चुना था और ज्योतिष शास्त्र को भी यही अर्थ देने के वास्ते पंडित रूपचंद जी ने यह नाम अख्तियार किया। इस किताब का नाम लाल रंग, मंगल ग्रह के प्रतिनिघि के अर्थों में नहीं है। यह किताब पंडितजी से किसी अगम्य शक्ति ने लिखवाई थी। वे अर्ध चेतना की अवस्था में बोलते जाते थे और उनके भाई का बेटा स्वर्गीय गिरधारी लाल शर्मा लिखते जाते थे। अगम्ये शक्ति ने सर्प का रूप धारण करके उनके भाई से जो कुछ फ़रमाया, यह उसी फरमान को बोलते गए। उन्होंने खुद उस शक्ति का इक़बाल किया था।
पंडित जी बड़े हंसमुख स्वभाव के थे। मुहावरे वह रोज़ाना बोलचाल में अक्सर इस्तेमाल करते थे। जैसे चन्द्र मुश्तरका हों तो, 'बकरी दूध देगी लेकिन मिंगने ढाल कर', बृहस्पति खाना नंबर सात में हो तो 'लोग गए बैसाखी, लाला जी रह गए घर की राखी', ब्राह्मणों की चोटी मेंह माँगती। खाना नंबर ग्यारह का चन्द्र 'न बूड़ी मरे, न खटिया टूटे', खाना नंबर दो का मंगल, दूसरों को पाले तो बरकत, नहीं तो "एक दूनी दूनी" । रूठे हुए ग्रहों को मनाने के जितने उपाए इस किताब में दिए गए हैं और किसी किताब में नहीं मिलते।
लाल किताब संयुक्त पंजाब क्षेत्र जिसमे पाकिस्तान के कुछ भाग, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू और कश्मीर राज्य मे बहुत प्रचलन मे है। क्योकि लाल किताब मे ज्यादातर उपाय जल प्रवाह करने के होते हैं और इन क्षेत्रों मे नदियों और नहरो की कोई कमी नहीं है।
मुझे आपसे बड़े ही निराशाभाव से यह बताना पड़ रहा है कि लाल किताब के उपाय पहले उपरोक्त क्षेत्र मे दादी नानी के नुस्खो की तरह प्रचलन मे थे जैसे रात को सिराहने पानी रखना सुबह पेड़ो मे ढालना, भंन्गी को पैसा देना, पांव के अंगूठे मे सफेद धागा बांधना, कानो मे सोना पहनना, कुत्ता पालना और सेवा करना आदि। जो वक्त के साथ धीरे-धीरे लुप्त होते गये कारण भारतवर्ष का दुरभाग्य कि सदियों की गुलामी ने हमे हमारे ही रीति रिवाजों, नियम कानून, सिद्धान्तो और विचारो, यहां तक कि धर्म से भी विमुख कर दिया कारण था कि 1000-1200 साल पहले मुस्लिम आक्रमकारियों ने अपना धर्म विचार व अपनी आश्थात्ये हम पर थोपे और करीब 250-300 साल पहले आंग़ज़ो ने अपनी बाहरी आक्रन्तायों मे हम भारत वासियो को हर प्रकार से साम, दाम, दण्ड, भेद द्वारा हमारे पौराणिक ज्ञान, सिद्धान्त, रीत-रिवाज, मान्यतायों, प्राचीन विद्याओं से दूर किया। हमारे प्राचीन भारत के गौरव विश्वविद्यालों, मंदिरो को आग के हवाले तक किया और न जाने किन-किन प्रकार से भारतीय सभ्यता को नष्ट और भ्रष्ट किया लेकिन प्रकृति की विडम्बना देखिए कि एक अंग्रेज मिलेट्री आफिसर ने ही लाल किताब ज्योतिष को पुर्नजीवित करने मे अपना अहम योगदान दिया। उसने एक फौजी सिपाही (जिसे लाल किताब ज्योतिष का ज्ञान था) के द्वारा लाल किताब के नियम व सिद्धान्त लिखने को कहा और अपने एकाउंटेन्ट श्री रूपचन्द जोशी से लिपिबद्ध करवाया और श्री रूपचन्द जोशी की मेहरबानी के कारण पब्लिसर श्री गिरधारी लाल शर्मा जी के द्वारा 1939 मे आम जन मानस के सामने लाल किताब को प्रस्तुत किया जब ये किताब छपकर आम जन मानस के सामने आई तो उस समय के कुछ लोग जिन्हे लाल किताब के सिद्धान्त की जानकारी थी उन्होने पढ़ा तो उसमे लिखित सिद्धान्त के अलावा अपने-अपने सिद्धान्त जोड़ने शुरू किए इस प्रकार फिर 1940 मे कुछ और सिद्धान्त जुड़े बाद मे 1941 और 1952 तक इसी प्रकार 5 किताबो का प्रकाशन हुआ जिनमे लगभग सभी सिद्धान्त और नियमो का समावेश हो चुका था और आज भी लाल किताब के कुछ विद्वान अपना-अपना योगदान दे रहे हैं क्योकि अनुसंधान हमेशा होते रहते हैं हमारी संस्था पिछले 30 वसों से नये नये नियम व सिद्धान्तओं की नई नई खोज कर रही है और हमारे गुरुदेव जी डी वशिष्ट जी अपने ज्ञान के आधार पर कई नियमो की खोज की है। उन्होंने यह ज्ञान केवल अपने तक ही नहीं रखा बल्कि पूरे संसार को देने का प्रयास कर रहे हैं। उनके द्वारा किये गए उन्थक परिश्रम फल स्वरुप उन्होंने लाल किताब अमृत और यस ई कैन चेंज होरोस्कोप की रचना की। यह इकीसवीं शताब्दी का बहुत बड़ा अविष्कार है। इस को प्राप्त कर के और उनके उपाए करके जातक अपने भविष्य को खुशहाल बना है।
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